प्रस्फुटन

जिन्दगी की कही-अनकही, होनी-अनहोनी को महसूस कर अनायास शब्द आ जातें हैं, उन्हें लिख देता हूँ, तो कविता बन जाती है, क्या लिखता हूँ, उसकी समीक्षा आज तक जरूरी नहीं समझी, न ही चाहूँगा कि किसी प्रकार की कृत्रिमता का आवेग इन रचनाओं में आये, लम्बे समय से लिख रहा हूँ, पुराना ब्लोगर भी हूँ लेकिन आज तक इस सब को छुपाये रखा, आज जब जीवन में एक नए मोड़ पर खडा, एक नई जिन्दगी का इन्तजार कर रहा हूँ, कहीं अन्धकार में वो जीवन पा रहा है और मैं इन गीतों को उसके लिए लिख रहा हूँ.

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मेरी कविता

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