काश दर्द को कोई
नाम दे पातातो जरूर दे देता
ये दर्द है या
मेरे होने का सिला
आज तक
समझ नहीं पाया
बस कहीं
कुछ चुभता है,
दर्द सा होता है.
क्यों पता नहीं
कहाँ ये भी
नहीं पता
कभी टेसुओं
सा बहता है
कभी अंगार
सा जलता है.
ज्वार सा
उठता है
सागर सा फैल
अणु सा
सिमट जाता है
बस कहीं
कुछ चुभता है,
दर्द सा होता है.
(आशुतोष पाण्डेय)